यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है, क्योंकि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो गुनगुने ईसाइयों से भरी है और ईसाई जो अपनी इच्छानुसार जीवन जीते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि सब कुछ ठीक है, परमेश्वर केवल प्रेम है और वे परमेश्वर की कृपा से बच गए हैं, जो कुछ हद तक सच है, लेकिन उन्हें लगता है कि वे जितना चाहें उतना पाप कर सकते हैं और फिर भी स्वर्ग जा सकते हैं। क्या वह सच है? क्या कोई ईसाई सचमुच पाप में रहते हुए भी स्वर्ग जा सकता है? खैर हम इस लेख में यही देखने जा रहे हैं। चलो सुरु करें।
अब अधिकांश मसीही द्वारा यह प्रश्न पूछने का मुख्य कारण यह है कि वे कुछ पापों को छोड़ना नहीं चाहते हैं, वे अपनी पापपूर्ण जीवनशैली से पूरी तरह परमेश्वर की ओर मुख मोड़ना नहीं चाहते और यही समस्या की असली जड़ है लेकिन परमेश्वर का वचन बहुत स्पष्ट है पौलुस 1 कुरिन्थियों 6:9-10 में कहता है। “क्या तुम नहीं जानते कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ; न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरुषगामी, न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न अन्धेर करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे।” तो यह बिल्कुल स्पष्ट है और हमें अपनी जीवनशैली के अनुसार बाइबल को बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, लेकिन हमें अपना जीवन शैली बदलना चाहिए बाइबिल के अनुसार। यदि हम बाइबल का अध्ययन करें तो हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि पाप में जीने और उसकी परवाह न करने के बीच एक बड़ा अंतर है और एक मसीही के रूप में कभी-कभी पाप करना और परमेश्वर से हमें क्षमा करने के लिए कहना। एक सच्चे एक नए आत्मिक स्वभाव वाले मसीही के रूप में आपको उस दिन एक नया आत्मिक स्वभाव प्राप्त हुआ है जिस दिन आप मसीही बना जब आपको परमेश्वर द्वारा धर्मी ठहराया गया हो और अब यह नया आत्मिक स्वभाव परमेश्वर के विरुद्ध पाप नहीं करना चाहता और आपके भीतर का पवित्र आत्मा भी आपको पाप का दोषी ठहराएगा। नये सिरे से जन्म लेने वाले मसीही के लिए यह असंभव है पाप में जीना जारी रखना, लेकिन इसे सुनें क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है, कभी-कभी न चाहते हुए भी पाप करना संभव है, क्योंकि आप अभी भी इस पापी शारीरिक प्रकृति की दुनिया में रहते हैं और आपके पास अभी भी एक पापी स्वभाव, एक शारीरिक स्वभाव है जो हमेशा हमारे नए आत्मिक स्वभाव से लड़ेगा इसलिए आपको सीखना होगा कि आत्मिक स्वभाव के माध्यम से कैसे जीना है, न कि अपने शारीरिक पुराने स्वभाव के माध्यम से। गलातियों 5:16-18 कहता है: “पर मैं कहता हूँ, आत्मा के अनुसार चलो तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे। क्योंकि शरीर आत्मा के विरोध में और आत्मा शरीर के विरोध में लालसा करता है, और ये एक दूसरे के विरोधी हैं, इसलिये कि जो तुम करना चाहते हो वह न करने पाओ। और यदि तुम आत्मा के चलाए चलते हो तो व्यवस्था के अधीन न रहे।” यदि आप कहते हैं कि आप एक मसीही हैं, लेकिन बिना किसी अपराध बोध या किसी संघर्ष के आप पाप में जी रहे हैं तो आप शायद सच्चे मसीही नहीं हैं और आप स्वर्ग नहीं जाओगे क्योंकि आप बिल्कुल भी नहीं बदले हो, आपका कभी नये सिरे से जन्म नहीं हुआ है। यदि आप सच्चे मसीही हैं तो आप एक नए पुरुष, एक नई महिला हैं; आपको एक बिल्कुल नया स्वभाव प्राप्त हुआ है; आपके पास एक बिल्कुल नया जीवन, नई आत्मिक प्रकृति है जो नए फल लाती है और अंततः एक बिल्कुल नया जीवन है। 2 कुरिन्थियों 5:17 कहता है: “इसलिये यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है : पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, सब बातें नई हो गई हैं।” परमेश्वर को आपका पाप पसंद नहीं है यह सीखना भी आपकी ज़िम्मेदारी है कि यह पूरी नई आत्मिक प्रकृति क्या है और मसीह में आत्मिक रूप से विकसित हो इफिसियों 4:22-24 कहता है “कि तुम पिछले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो और अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ, और नये मनुष्यत्व को पहिन लो जो परमेश्वर के अनुरूप सत्य की धार्मिकता और पवित्रता में सृजा गया है।” कुछ लोग कहते हैं: “ठीक है परमेश्वर मैं जैसी हूं, वैसे ही मुझे प्यार करता है” ठीक है, हां, वह आपसे वैसे ही प्यार करता है जैसे आप हैं, लेकिन वह आपके पाप से प्यार नहीं करता। आइए देखें कि पौलुस रोमियों 6:1-2 में क्या कहता है “तो हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहें कि अनुग्रह बहुत हो? कदापि नहीं! हम जब पाप के लिये मर गए तो फिर आगे को उसमें कैसे जीवन बिताएँ?” आप जा सकते हैं और इस पूरे अध्याय को अपने समय में पढ़ सकते हैं लेकिन आयत 11-12 पर थोड़ा ध्यान दें “ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिये तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिये मसीह यीशु में जीवित समझो।” इसे सुनो। “इसलिये पाप तुम्हारे नश्वर शरीर में राज्य न करे, कि तुम उसकी लालसाओं के अधीन रहो;” यह बहुत स्पष्ट है! आपके लिए वास्तविक प्रश्न यह नहीं होना चाहिए: क्या हम पाप में जीते हुए भी स्वर्ग जा सकते हैं? एक सच्चा मसीही क्या है यह होना चाहिए: एक सच्चा मसीही क्या है? क्या मैं सच्चा मसीही हूँ? क्योंकि एक वास्तविक नये सिरे से जन्म वाले मसीही का आत्मिक रूप से नये सिरे से जन्म हो चुका है और वह परमेश्वर का पालन करेगा। इसलिए नहीं कि उन्हें ऐसा लगता है कि उन्हें ऐसा करना होगा, लेकिन क्योंकि वे चाहते हैं। 1 यूहन्ना 2:3-6 “यदि हम उसकी आज्ञाओं को मानेंगे, तो इससे हम जान लेंगे कि हम उसे जान गए हैं। जो कोई यह कहता है, “मैं उसे जान गया हूँ,” और उसकी आज्ञाओं को नहीं मानता, वह झूठा है और उसमें सत्य नहीं; पर जो कोई उसके वचन पर चले, उसमें सचमुच परमेश्वर का प्रेम सिद्ध हुआ है। इसी से हम जानते हैं कि हम उसमें हैं : जो कोई यह कहता है कि मैं उसमें बना रहता हूँ, उसे चाहिए कि आप भी वैसा ही चले जैसा वह चलता था।” यदि आप परमेश्वर के वचन का पालन करते हैं तो ही आप सच्चे मसीही हैं। कर्म के बिना विश्वास का कोई अर्थ नहीं है और विश्वास के बिना कर्म का कोई अर्थ नहीं है। ये दोनों हमेशा साथ काम करते हैं याकूब 2:14-26 इसे पूरी तरह से समझाता है लेकिन वह पूरे अध्याय आयत 26 को कहकर समाप्त करता है “अत: जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है, वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है।” ठीक है, तो बाइबिल बहुत स्पष्ट है और मुझे विश्वास है कि यह आपके प्रश्न का उत्तर देता है। लेकिन असली सवाल यह होना चाहिए कि क्या मैं एक सच्चा मसीही हूं और यदि आप अनिश्चित हैं तो परमेश्वर के साथ आपके रिश्ते में कुछ गड़बड़ है, और आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या आप सचमुच नये सिरे से जन्म लेने वाले मसीही हैं।
Credited: DLM Christian Lifestyle Translated by: Hindi Bible Resources